हीरे के अंदर संरक्षित खनिजों ने धरती के गर्भ में दबी चमकदार नीली चट्टानों के बारे में संकेत दिए हैं, जिनमें इतना पानी हो सकता है जितना सारे महासागरों में है.
मध्य-पश्चिम ब्राज़ील से मिले एक हीरे में ऐसे खनिज मौजूद हैं जो धरती से करीब 600 किलोमीटर अंदर बनते हैं और इनके अंदर पर्याप्त मात्रा में पानी मौजूद है.
प्राकृतिक हीराइस शोध को विज्ञान की पत्रिका नेचर में प्रकाशित किया गया है. इस शोध से यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि पत्थरों से पटे बहुत से ग्रहों की गहराई में पानी हो सकता है.
बहुत गहरे ज्वालामुखी पहाड़ के फटने से जो चट्टान या पत्थर धरती की सतह पर आए और इनमें जो हीरे के टुकड़े मिले वो धरती की बड़ी ही दिलचस्प तस्वीर दिखाते हैं.
कनाडा के अल्बर्टा विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर ग्राहम पीयरसन के नेतृत्व वाले शोध दल ने एक विस्तृत परियोजना के तहत दस करोड़ साल पुराने किंबरलाइट से निकले और ब्राज़ील के जुइना में मिले एक हीरे का अध्ययन किया.
उन्होंने देखा कि इसमें रिंगवूडाइट नाम का एक खनिज है जो धरती के अंदर 410 से 660 किलोमीटर की गहराई में ही बन सकता है. इससे यह भी पता चला कि कुछ हीरे कितनी गहराई में तैयार होते हैं.
इससे पहले रिंगवूडाइट सिर्फ़ उल्कापिडों में ही पाया गया था, ऐसा पहली बार हुआ है कि धरती में रिंगवूडाइट पाया गया. इससे भी आश्चर्यजनक बात यह है कि इस खनिज का तक़रीबन एक फ़ीसद हिस्सा पानी है.
हालांकि यह सुनने में बहुत कम लगता है लेकिन क्योंकि रिंगवूडाइट धरती की गहराई के बहुत बड़े हिस्से में पाया जाता है, इसलिए इसका मतलब हुआ कि धरती के अंदर बहुत सारा पानी होगा.
कैंब्रिज विश्वविद्यालय की डॉ सैली गिबसन इस शोध में शामिल थीं. वह कहती हैं, "पानी का इतनी भारी मात्रा में पाया जाना हमारी धरती की सतह पर सबसे पहले पानी मिलने की अवधारणा में बेहद महत्वपूर्ण नई जानकारी है."
यह अवलोकन हमारे ग्रह की गहराई में पानी जमा होने का पहला भौतिक सबूत तो है ही इसके साथ ही यह धरती के अंदरूनी हिस्से के सूखे, तरल या कई हिस्सों में तरल होने के 25 साल पुराने विवाद पर भी विराम लगाता है.
हीरे के इन नमूनों की व्याख्या करते हुए प्रोफ़ेसर पीयरसन कहते हैं, "ऐसा लगता है कि यह नरक तक जाकर वापस आया है, जो इसमें मौजूद है."
कोलोराडो विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर जोसेफ़ स्मिथ कई सालों से रिंगवूडाइट का अध्ययन कर रहे हैं और उनकी प्रयोगशाला में ऐसे कई खनिजों का अध्ययन किया गया है.
वह कहते हैं, "मुझे यह अचंभित करने वाली बात लगती है! इसका मतलब यह हुआ कि धरती के गर्भ में महासागरों से कई गुना ज़्यादा पानी जमा हो सकता है. इससे हमें यह भी पता चलता है कि हाइड्रोजन धरती का आधारभूत तत्व है और वो बाद में धूमकेतुओं से नहीं आया है."
"इस खोज के आधार पर कहा जा सकता है कि हाइड्रोजन धरती की अंदरूनी व्यवहार को वैसे ही नियंत्रित करता होगा जैसे कि वह सतह पर करता है. और धरती जैसे पानी वाले ग्रह हमारे सौरमंडल में और भी हो सकते हैं."
यह अनुमान भी लगाया जा सकता है कि दूसरे चट्टानी ग्रहों में किस मात्रा में पानी हो जमा हो सकता है.
प्रोफ़ेसर स्मिथ की प्रयोगशाला में भी इसी तरह के खनिज के कण है जो माइक्रोस्कोप से देखने पर चमकदार नीले नज़र आते हैं.
रिंगवूडाइट के पानी धारण करने की क्षमता की खोज, धरती की गहराई में इसकी प्रचुरता और इसके ख़ूबसूरत रंग को देखते हुए धरती को मिला "नीले ग्रह" का नाम और भी सार्थक हो जाता है(बीबीसी न्यूज़ )
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